Friday, 5 August 2011

शिकायत

ना कहते बनता , ना सुनते बनता
हर पल यूँही बस गुज़रता रहता
क्या उम्मीद रख कर शिकायत 
 करें 
जब रूह ही गुनाह करे

कहते हैं खुदा हर रूह में है
मन की आवाज़ हर दुआ में है
पर शक्सियत का कसूर क्या
जब वो इंसान के रूप में है

आते हैं ऐसे पल भी सामने
जब शक्सियत मिल जाती हैं रूह से
बन जाती हैं इक छवि सी खुदा की
मिलता फिर हर इंसान में फ़रिश्ता है

रु -ब -रु जब होता है फ़रिश्ता कोई
नूर सा भर देता है हर पल में
आती है हिम्मत गुनाह कुबूल करने की
बाक़ी रह जाती नहीं कोई शिकायत है