Thursday 26 July 2012

सूरज की रौशनी हो या हो रात का अँधेरा ...


दुनिया  का  दस्तूर  कुछ  अनोखा  है ,कहीं  बारिश  तो  कहीं  सूखा  है 
उस  गीली   मिट्टी  की  खुशबु  में  खो  ना  जाना , सच  नहीं  वो  तो  एक  धोखा  है 

सपनों  की  दुनिया  से  निकल  बाहर ,परछाई  से  आगे  चलना  भी  सीख  ज़रा 
दिन  की  रौशनी  में  ही  साथ  देती  है  ये , अँधेरे  का  लुत्फ़  भी  उठा  ज़रा 

पड़ती  है  जब  सूरज  की  रौशनी  ,छिपता  ना  तब  कोई  राज़  है 
पर  जो  खुद  ही  छिप  जाता  है  कुछ  पल  में , ईमान  पर  तो  उसके  भी  सवाल  है 

रख  इतना  भरोसा  खुद  पर  ऐ  बन्दे ,की  मिसाल  बन  जाए  दूसरों  के  लिए 
पर  इस  गुमां  में  ना  भूल  जाना  की  कुछ  अपने  भी  हैं   खड़े  यहाँ  तेरे  लिए  

सुख -दुःख  हो  या  हो  बारिश -सूखा , रहता  कुछ  नहीं   है  सदा  के  लिए 
ये  तो  बस  वो  कुछ  खास  अपने  हैं , जो  ना  रह कर  भी  रह  जाते  हैं  ज़िन्दगी  भर  के  लिए 

माना  अकेला  आया  था  इस  ज़मीन  पर  तू , और  जाएगा  भी  अकेला  ही  तू  
पर  अपने  हमसफ़र  से  मिले  बिना  , कैसे  कहेगा  कि  ज़िन्दगी  जी कर  आया  है  तू 





No comments:

Post a Comment