दुनिया का दस्तूर कुछ अनोखा है ,कहीं बारिश तो कहीं सूखा है
उस गीली
मिट्टी की खुशबु में खो ना जाना , सच नहीं वो तो एक धोखा है
सपनों की दुनिया से निकल बाहर ,परछाई से आगे चलना भी सीख ज़रा
दिन की रौशनी में ही साथ देती है ये , अँधेरे का लुत्फ़ भी उठा ज़रा
पड़ती है जब सूरज की रौशनी ,छिपता ना तब कोई राज़ है
पर जो खुद ही छिप जाता है कुछ पल में , ईमान पर तो उसके भी सवाल है
रख इतना भरोसा खुद पर ऐ बन्दे ,की मिसाल बन जाए दूसरों के लिए
पर इस गुमां में ना भूल जाना की कुछ अपने भी हैं खड़े यहाँ तेरे लिए
सुख -दुःख हो या हो बारिश -सूखा , रहता कुछ नहीं है सदा के लिए
ये तो बस वो कुछ खास अपने हैं , जो ना रह कर भी रह जाते हैं ज़िन्दगी भर के लिए
माना अकेला आया था इस ज़मीन पर तू , और जाएगा भी अकेला ही तू
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